Skip to Content

महाकुंभ मेला: प्रयागराज का पौराणिक इतिहास

महाकुंभ मेला: प्रयागराज का पौराणिक इतिहास

महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का एक अद्वितीय धार्मिक पर्व है, जो प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर आयोजित होता है। यह मेला हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है और इसकी पौराणिकता वेदों, पुराणों और प्राचीन कथाओं में रची-बसी है।

महाकुंभ का पौराणिक आधार

महाकुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। जब देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया, तो अमृत कलश को लेकर विवाद हुआ। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत कलश को देवताओं को सौंपने का निर्णय लिया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ, तो उस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं:

  1. प्रयागराज
  2. हरिद्वार
  3. उज्जैन
  4. नासिक

यह माना जाता है कि इन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरने से यह स्थान अत्यंत पवित्र हो गए। इसलिए, इन स्थानों पर हर 12 वर्षों में महाकुंभ का आयोजन होता है।


प्रयागराज की विशेषता

प्रयागराज को पौराणिक ग्रंथों में 'तीर्थराज' कहा गया है। यह वह स्थान है जहाँ ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए प्रथम यज्ञ किया था। संगम स्थल पर गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन इसे अद्वितीय बनाता है।

महाकुंभ और ज्योतिषीय महत्व

महाकुंभ मेले का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर होता है। जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इसे आध्यात्मिक शुद्धि का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

महाकुंभ की धार्मिक मान्यता

महाकुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है, ऐसा शास्त्रों में उल्लेखित है। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु संगम में स्नान कर अपने जीवन को पवित्र करते हैं। इसके साथ ही, साधु-संतों, नागा बाबाओं और अखाड़ों की विशेष भूमिका इस मेले को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाती है।

संस्कृति और आध्यात्मिकता का संगम

महाकुंभ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिकता का जीवंत उत्सव है। यहाँ श्रद्धालु केवल स्नान करने ही नहीं, बल्कि संतों के प्रवचन सुनने, भक्ति में रमने और योग-ध्यान का अनुभव करने आते हैं।

आधुनिक युग में महाकुंभ

आज के समय में, महाकुंभ का आयोजन अत्यंत सुव्यवस्थित और भव्य रूप से किया जाता है। करोड़ों की संख्या में लोग इस मेले में भाग लेते हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन इस आयोजन को सफल बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग करते हैं।

निष्कर्ष

महाकुंभ मेला न केवल धर्म और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। प्रयागराज में आयोजित यह महापर्व आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक अनुभव और सामाजिक समरसता का संदेश देता है।

महाकुंभ का महत्व केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर में भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान का उदाहरण है।

jogebaba1879@gmail.com 27 January 2025
Share this post
Tags
Archive
Over 200 new projects register with Uttar Pradesh RERA in Jan-Oct 2024